मंदिर-मस्जिद

एक बनाया हमको जिसने,
हमने उसको बाँट दिया,
एक दूजे को आपस में ही,
धरम-धरम में छांट दिया|

कहते हैं राम की भूमि है,
मंदिर यहीं बनाएँगे,
अपने भगवान की खातिर ये,
तेरा भगवान हटाएंगे|

फिर क्यों वो पीछे हट जाएँ,
वो अपनी मस्जिद चाहते हैं,
पर ना हाजी,ना संत हैं वो,
जो आपस में लड़वाते हैं|

देख रहा है वो ऊपर से,
क्या उसको आराम मिलेगा,
ना अल्लाह उस मस्जिद में ,
ना उस मंदिर में राम मिलेगा|

आधा कर लो मंदिर,आधी
मस्जिद,भक्त और सभी नमाज़ी,
एक साथ उस एक को पूजे,
बोलो क्या तुम होगे राज़ी?

बोल लिखा क्या है गीता में,
क्या तेरी क़ुरान में है ,
भाषा का ही फर्क है,दोनों
उसके ही पैग़ाम तो है|

एक दूजे से प्यार कर,
ना एक दूजे पे वार कर ,
हैं एक ही तो हम,लेकिन तू
अंजान बना है जान कर|

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